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योग से प्राप्त करें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन

योगाभ्यास की आवश्यकता क्यों?

सर्वप्रथम मां गायत्री और गुरु सत्ता के चरण कमलों में नमन करते हुए हम अपनी बात शुरू करते हैं। आज के समय में योग की आवश्यकता को हम सभी भली प्रकार से समझते हैं। योग किस तरह से शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक, और आध्यात्मिक रूप से मनुष्य के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है, यह हम सभी जानते हैं। लेकिन सब कुछ जानने के बाद भी हम अपनी जीवनचर्या को बदलने में असमर्थ सा अनुभव करते हैं क्योंकि हम अपने मन, चित् वृत्तियों या यूं कहें कि अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं रख पाते। जिसके कारण ना चाहते हुए भी हमारे जीवन में कई तरह के कष्ट और विपरीत परिस्थितियों से हमारा सामना हो जाता है।

योगाभ्यास का मार्ग

योगाभ्यास द्वारा हम अंधकार से प्रकाश और आज्ञान से ज्ञान की ओर अग्रसर होते हैं और अपने आप ही हमारे अंदर जीवन को जीने का अनुशासन अर्थात् जीवन जीने की कला आ जाती है। आवश्यकता है केवल अपने आप को समय देने की। आजकल भाग दौड़ की जिंदगी में व्यक्ति अपनी सांसारिक इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति करने हेतु इतना अधिक संलग्न है कि वह अपने वास्तविक स्वरूप को भूल सा गया है।

आत्म-ज्ञान का महत्व

जब तक व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप के प्रति जागरूक होने का प्रयास नहीं करता तब तक वह जीवन में विभिन्न तरह की परिस्थितियों चाहे सुख हो या दुख के चक्कर में उलझा सा रहता है। हमें इस विषय पर एक बहुत सुंदर उल्लेख मिलता है भज गोविंदम आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित:“पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम्।
इह संसारे बहुदुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारे
भजगोविन्दं भजगोविन्दं, गोविन्दं भजमूढमते।
नामस्मरणादन्यमुपायं, नहि पश्यामो भवतरणे।”भावार्थ: बार-बार जन्म, बार-बार मृत्यु, बार-बार माँ के गर्भ में शयन, इस संसार से पार जा पाना बहुत कठिन है, हे कृष्ण कृपा करके रक्षा करो।

वास्तविक सुख की खोज

वास्तविक सुख क्या है? संतुष्टि क्या है? केवल हमारी इच्छाओं की पूर्ति होने पर क्या हम संतुष्ट हो पाते हैं या हम कुछ और चाहत रखते हैं? इन सभी प्रश्नों का उत्तर जब तक हम अपने अंतर्मन में नहीं खोजेंगे तब तक हम जीवन के असली आनंद को अनुभव नहीं कर पाएंगे। यदि हम संपूर्ण सांसारिक भौतिक चीजों को प्राप्त करने के बाद भी खाली अनुभव करते हैं तो यह जो खालीपन है यह इसी कारण होता है क्योंकि हम आनंद को बाहरी दुनिया में खोजते रहते हैं।

आध्यात्मिक मार्ग की आवश्यकता

किंतु वास्तविक आनंद हमारी अपनी अंत: चेतना के अनुभव होने पर ही प्राप्त होता है। जब तक हम आध्यात्मिक मार्ग की ओर प्रशस्त नहीं होते तब तक इस संसार में हमारे पास सब कुछ होते हुए भी कहीं ना कहीं संतोष और शांति का अभाव सा हमारे मन में बना रहता है। हमें अपने आप को समझना होगा कि वास्तव में ही हम कौन हैं। हमारी वास्तविक पहचान क्या है?

योगाभ्यास का सकारात्मक प्रभाव

हम जीवन में बहुत कुछ कर सकते हैं। हम एक शक्तिशाली आत्मा हैं; कहीं किसी तरह से हमारा मन कमजोर नहीं है। मनुष्य में वह सामर्थ्य और शक्ति है कि जो वह चाहता है वह उसे प्राप्त कर लेता है लेकिन दृढ़ इच्छा शक्ति, संकल्प शक्ति और आत्मविश्वास की अत्यंत आवश्यकता है।योगाभ्यास हमारा सकारात्मक मार्गदर्शन करता है विशेषकर आज के समय में विद्यार्थियों जिनको एक सही दिशा की आवश्यकता है जो हमारे देश का भविष्य हैं। यदि वे अपनी इस प्राचीन योग विद्या को अपने जीवन में अपना लें तो उनका सर्वांगीण विकास हो पाएगा जो नव भारत के निर्माण में एक आधारशिला के रूप में अपनी विशेष भूमिका निभाएगा।

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम्।
इह संसारे बहुदुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारे
भजगोविन्दं भजगोविन्दं, गोविन्दं भजमूढमते।
नामस्मरणादन्यमुपायं, नहि पश्यामो भवतरणे।

नाद ब्रह्म अकादमी का योगदान

हम सबको अपने विचारों को सकारात्मक दिशा की ओर आगे बढ़ना होगा। आज के समय में विचारों की संकीर्णता के कारण कई तरह के अपराध, कई तरह के रोग और न जाने कितनी विपरीत परिस्थितियों का सामना हमें करना पड़ता है चाहे वह व्यक्तिगत रूप से हो या सामाजिक रूप से हो। योगाभ्यास की क्रियाओं का दीर्घकाल, निरंतर, सत्कार पूर्वक अभ्यास करने से और मन को नियंत्रित करने से हम अपना सर्वांगीण विकास कर सकते हैं।

इसी दिशा में नाद ब्रह्म स्टूडियो एक सकारात्मक पहल है जो मनुष्य की आंतरिक कलाओं को निखारने का, ऊर्जा को सही मार्ग प्रदान करने का कार्य करेगा और आप सबके सहयोग से अपनी संस्कृति को युवा पीढ़ी के साथ सांझा करने का सुअवसर प्रदान करेगा।

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